सबक
जाने वालों को कोई समझाए।यूँ,
इस कदर,
जाते हुए,
यादों के टुकड़े छोड़ा नहीं करते। लम्हें जो एक बार बिखर जाएँ,
यूँ बिखरे लम्हों को,
जोड़ा नहीं करते। दर्द,
जो मिला सबब हमें,किसी के जाने के बाद। सफर का मज़ा कहीं ज्यादा था,
सिफ़र।ये सबक सीखा हम ने,
मंजिल पे पहुँच जाने के बाद।
बहुत खूब रचना...
ReplyDeleteदिल के अंदर नश्तर सी घुस गई आपकी 'सबक'
आलोक साहिल
nice
ReplyDeleteदर्द, जो मिला सबब हमें,
ReplyDeleteकिसी के जाने के बाद।
सफर का मज़ा कहीं ज्यादा था, सिफ़र।
ये सबक सीखा हम ने,
मंजिल पे पहुँच जाने के बाद।
http://kavyawani.blogspot.com/
SHEKHAR KUMAWAT
:) bahut achchi hai kavita..
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