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Friday, May 15, 2009

कुछ भी नहीं

अक्स कोई एक भी यहाँ पूरी नहीं,
पर हर उस एक के बिना ...पूरा कुछ भी तो नहीं।
कुछ ऐसी अधूरेपन की आदत सी है,
कि, जिंदगी को सम्पूर्णता का आभास भी नहीं।
इल्म है सबको, पर अनजान बनने कि आदत सी है,
शायद कभी हम जागेंगे और ...........................कुछ नहीं।

जिम्मेदारियां तो हम सब निभाते हैं
पर जिम्मेदारियों कि जिम्मेदारी का एहसास कहीं भूल जाने कि आदत सी है
फिर बस सब चलता है.......
और अंधों कि भीड़ में एक दूसरे को शाबासी दे खुश कर लेते हैं
क्योंकि....बस, सब चलता है और......................कुछ नहीं।

हर एक चीज़ को बाँट कर,
हम अपने एहसास से नाते तोड़ लेते हैं।
शब्द अब भी वही हैं , पढ़ तो लेते हैं, समझ भी लेते हैं,
पर समझने का एहसास तो अब बचा नहीं,
कुछ लकीरें उकेर, शवेत पन्नों को काला स्याह कर लेते हैं।
क्योंकि .....अब सब चलता है और ....................कुछ भी नहीं।

2 comments:

  1. हर एक चीज़ को बाँट कर,
    हम अपने एहसास से नाते तोड़ लेते हैं।
    शब्द अब भी वही हैं , पढ़ तो लेते हैं, समझ भी लेते हैं,
    पर समझने का एहसास तो अब बचा नहीं,
    कुछ लकीरें उकेर, शवेत पन्नों को काला स्याह कर लेते हैं।
    क्योंकि .....अब सब चलता है और ....................कुछ भी नहीं।

    thse are very beautifully composred lines keep writing

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  2. Thanks for visiting my blog and appreciation.

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