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Thursday, May 21, 2009

काश... ये मुमकिन होता

काश ये मुमकिन होता,
कि, राहों में मुड़ना आसान होता।

कभी
मैं भी तो, दो अश्क लुटाता,
उन दरख्तों पर, जिन पर आज भी...
मेरे नाम, तुम संग जिंदा हैं।

काश ये मुमकिन होता,
हवाओं में बहना मुनासिब होता, तो...
आज मैं दूरियां कम कर लेता।

वादे
, जो तोड़े तेरी नज़रों में,
वो आज फिर निभाकर, अंधेरे में,
चुपचाप, ... आँखें नम कर लेता।

काश ये मुमकिन होता।

पर फिर, ... एहसास... तेरे होने का मुझमें,
दर्द से भी जुदा करती है।
कि, जान न जाए तू मेरी हालत,
ज़िन्दगी, ... चलती थी,... अब भी चलती है।

2 comments:

  1. haal apne yaha bayan ho gaye .pyar aur vishwas ko pane se jyada khone ka dar rahata hai .jitni umra lekar aaye hai wo to har haal me jeena hai .dil bahalane ke vaste har khayal behatar hai .jindangi chalati thi ab bhi chalti hai .bahut achchaa laga .

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  2. Thanks alot Mrs. Jyoti, for such a wonderful comment.
    I am really obliged by having a reader like you.

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