ज़र में भी अब अलफाज़ लड़खड़ाते हैं।
खता अब सज़ा बन चुकी है।
हर मोड़, एक-एक नाते, भूली बिसरी हर वो बातें,
चाहत और फिर एक आहट सी।
कि, अब उन्स के दीपक में भी लौ नहीं।
कि, अब बाती से रौशनी कज़ा बन चुकी है।
रिश्तों से क्या कहूँ?
अलफाज़ अब भी कोरे कागज़ पर हैं।
नज़रें रूकती नहीं, जाने कौन अब आएगा।
सतरंगी आँचल सा साया तो छूट गया।
कि, आकाश का सूनापन शायद अब छाएगा।
रिश्तों से क्या कहूँ?
रस्म धागों की, धागों में बंध चुकी है।
जिस्म का ज़र दहकता है।
कि , धागों से रिश्ते तो टूट चुके।
आज़ मैं पुकारता हूं, तुम आओगे?
कि, गुज़र जाएगा पल-पल ये,
कि, बहुत सहाएगा हर पल ये।
रिश्तों से क्या कहूँ?
वक्त का जिस्म जल तो गया।
कि, मौका परस्त रूह, है बिखरी कहीं।
हर पत्ते तो मेरी शाखों से टूट गए।
पर उन पत्तों कि काली ज़ुबाँ,
अब सच के दर पर मरती नहीं।
रिश्तों से क्या कहूँ?
बेहद भावुक रचना....
ReplyDeleteसाथ में बेहतर भी....संभावनाएं है....
behad marmsparshi liney hai dil garey tak choo gayi. hamari shubhkaamnaye svikaar kare.
ReplyDeletejai hind!
Thanks to all you guys (Samay, Prabal, Lokendra and Manoj), i was not expecting anybody, that too, so soon. Thanks a lot.
ReplyDeleteManoj, i visited your site, it's really good to see that you are providing something useful. Keep it up.
रिश्ते टूटेंगे बनेंगे जिन्दगी की राह में।
ReplyDeleteजिन्दगी है इक हकीकत जिन्दगानी और है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
narayan narayan
ReplyDeleteThanks Suman, Narad & Pawan (Real Photos).
ReplyDeleteIt feels really nice to have good comments on something of your own.....keep remain in touch.
Thanks Mrs. Sangeeta, for your warm welcome and best wishes. Anyway, i am not new on Blogs, but, yes this is the first time i am writing in hindi on any blog.
ReplyDeleteAwesome!!
ReplyDeleteLast para is soul stirring...wish u all the luck
Thanks Rajeev, remain in touch.
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