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Wednesday, May 20, 2009

एक गाँठ...कुछ अपना सा



ज़िन्दगी गाँठों की उलझन बन कर रह गई है
हर एक गाँठ मजबूती का एहसास, तो कहीं...
टूटे होने की कमज़ोर क्ल दिखती है।
कभी ... कुछ एक गाँठ खोलने की चाहत तो होती है, पर...
डरता हूं कि, गाँठें खोलने से रिश्तों के सिरे कहीं खो जायें,
और कभी......................................
.....................ये मुमकिन ही नहीं होता।

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